पुणे के अंकुरा अस्पताल ने दोन वर्षीय बच्चे का सफलतापूर्वक इलाज

 पुणे के अंकुरा अस्पताल ने दोन वर्षीय बच्चे का सफलतापूर्वक इलाज



खेत में पानी जमा होने के कारण बच्चा डूब गया था।

 


मरीज की जान बचाने के लिए सीपीआर प्रशिक्षण के बारे में लोगों में जागरूकता निर्माण करना जरूरी हैं – डॉ. चिन्मय जोशी


 


पुणे – दोन साल के बच्चे का पुणे स्थितक अंकुरा अस्पताल में सफलतापूर्वक इलाज किया गया हैं। सलाहकार बाल चिकित्सा और महाराष्ट्र के क्लस्टर चिकित्सा निदेशक डॉ चिन्मय जोशी के नेतृत्व में सलाहकार बाल चिकित्सा डॉ. विश्रुत जोशी, सलाहकार बाल चिकित्सा डॉ. निखिल झा और मुख्य नियोनेटोलॉजिस्ट, समुह निदेशक और प्रमुख नियोनेटोलॉजिस्ट वरिष्ठ सलाहकार बालरोग विशेषज्ञ डॉ. उमेश वैद्य ने इस बच्चे का इलाज किया हैं।


अमोद थोरवे यह बच्चा २५ जुलाई को सुबह ११ बजे, पुणे के अलंदी में घर के पास खेल रहा था। कई दिनों से भारी बारीश के बाद, आस-पास के खेतों में पानी भर गया था। इस पानी में खेलते समय वह डुब गया। बच्चे न दिखने के कारण माता-पिता उसे धुंदने लगे। उन्होंने बाहर खोजना शुरू किया और पाया कि वह डूब रहा है। बिना समय बर्बाद किए, बच्चे के माता-पिता ने उसे पानी से बाहर निकाला और तुरंत अस्पताल दाखिल किया। बच्चे को बेहोशी की हालत में अस्पताल लाया गया था। उसका दिल बहुत कमजोर था और रक्तचाप भी कम था। अंकुरा अस्पताल में ऐसी गंभीर परिस्थितियों से निपटने के लिए प्रोटोकॉल ने बच्चे को नई जिंदगी दी। अस्पताल लाने से पहले बच्चे को सीपीआर दीया गया था।


अंकुरा अस्पताल के कंसल्टेंट पीडियाट्रिक इंटेंसिविस्ट और क्लस्टर मेडिकल डायरेक्टर डॉ चिन्मय जोशी ने कहा, “मरीज को अस्पताल लाया गया था तक उसे तुरंत वेंटिलेशन पर रखा गया था। बच्चे को पीला पड गया था। और हदय की गती धीमी चलने के कारण उसे सांस लेने में तकलीफ हो रही थी। बच्चे के इलाज के लिए डॉक्टरों, नर्सों, एनेस्थेटिस्ट, हाउसकीपिंग, प्रशासन और सुरक्षा सहित पूरी टीम को बुलाया। बच्चे की नब्ज नहीं चल रही थी और रक्तचाप बहुत कम था। उसमें सायनोसिस, गंभीर एन्सेफैलोपैथी के लक्षण दिख रहे थे। इस बच्चे के सक्रिय पुनर्जीवन में क्लीनिकल और नॉन-क्लीनिकल टीमों के ३० से अधिक व्यक्ति शामिल थे। उसे स्थिर करने और हृदय को चालू करने के लिए ४ घंटे प्रयास करने के बार डॉक्टरों को सफलता हासिल हुई।"


अंकुरा अस्पताल के समूह निदेशक और प्रमुख नियोनेटोलॉजिस्ट डॉ. उमेश वैद्य ने कहॉं की, "केवल उन्नत सुविधाएं नहीं बल्कि आपातकालीन प्रोटोकॉल ने भी उसके जीवन को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आपातकालीन प्रोटोकॉल ने सुनिश्चित किया कि हर सेकंड की गिनती की जाए। इंटेंसिविस्ट के नेतृत्व में बहु-विषयक टीम के समन्वित प्रयासों ने इस संकट को रिकवरी में बदल दिया।"


डॉ. चिन्मय जोशी ने कहा, "उपचार के बाद अब बच्चे की सेहत में सुधार हुआ हैं। इलाज के बाद १८ घंटे के बाद बच्चे को वेंटिलेटर से हटाया गया। उसके बाद बच्चे की डिस्चार्ज दिया गया।


चिन्मय जोशी ने आगे कहॉं की, "कार्डियक अरेस्ट के दौरान सीपीआर देने से मरीज की जान बच सकती हैं। इस बारे में लोगों में जागरूकता निर्माण करना काफी जरूरी हैं। जब दिल रुक जाता है, तो महत्वपूर्ण अंगों में रक्त का प्रवाह रुक जाता है, जिससे कुछ ही मिनटों में मस्तिष्क को नुकसान या मौत हो सकती है। सीपीआर करके, आप पेशेवर मदद आने तक रक्त परिसंचरण और ऑक्सीजनेशन को बनाए रखने में मदद करते हैं। सीपीआर आपतकालीन स्थिती में व्यक्ती जान बचाने में मदद करता हैं। समुदायों को सीपीआर प्रशिक्षण और शिक्षा को प्राथमिकता देनी चाहिए। क्योंकी कार्डियक अरेस्ट की स्थिति में, हर सेकंड मायने रखता है।"


बच्चे के माता-पिता ने कहॉं की, "हमें बहुत खुशी हो रही है जब हम अपने बच्चे को अपने पुराने रूप में लौटते हुए देखते हैं। बच्चे की सेहत को देखकर हम काफी डर गए थे। लेकिन अस्पताल के डॉक्टरोंने तुरंत इलाज करने हमारे बच्चे को नई जिंदगी दी हैं। हमारे बच्चे की जान बचाने के लिए हम डॉक्टरों के आभारी हैं।"

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